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31 May, 2021

अहिल्याबाई होल्कर

 अहिल्याबाई होल्कर



जन्म दिनांक: 31 मई सन् 1725 ई
जन्मस्थान: चांऊडी गांव (चांदवड़), अहमदनगर, महाराष्ट्र
मृत्यु: 13 अगस्त सन् 1795 ई.
पिता का नाम:मानकोजी शिंदे
माता का नाम:सुशीला बाई
पति: खंडेराव
बच्चे: मालेराव (पुत्र) और मुक्ताबाई (पुत्री)
पद: महारानी
 कर्म भूमि:भारत

महारानी अहिल्याबाई होल्कर की आज 295 वीं जयंती है. महारानी अहिल्याबाई होल्कर एक बहादुर, निडर और महान योद्धा थीं. जिन्होंने अपने शासन के दौरान प्रजा के हित के लिए कई काम किए हैं.

उनको हमेशा से एक बहादुर, आत्मनिष्ठ, निडर महिला के रूप में याद किया जाता है. ये अपने समय की सर्वश्रेष्ठ योद्धा रानियों में से एक थीं, जो अपनी प्रजा की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहती थीं. इतना ही नहीं उनके शासन काल में मराठा मालवा साम्राज्य ने काफी ज्यादा नाम कमाया था. जनहित के लिए काम करने वाली महारानी ने कई हिंदू मंदिर का निर्माण भी करवाया था, जो आज भी पूजे जाते हैं.

अहिल्याबाई एक दार्शनिक और कुशल राजनीतिज्ञ थीं. इसी वजह से उनकी नजरों से राजनीति से जुड़ी कोई भी बात छुप नहीं सकती थी. महारानी की इन्हीं खूबियों के चलते ब्रिटिश इतिहासकार जॉन कीस ने उन्हें 'द फिलॉसोफर क्वीन' की उपाधि से नवाजा था.

महारानी अहिल्याबाई होलकर 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के अहमदनगर के जामखेड़ शहर के एक छोटे से गांव चौंडी में जन्मी थी। उनके पिता का नाम पाटिल मंकोजी राव शिंदे है और उनकी माता का नाम सुशीला बाई था। महारानी अहिल्याबाई अपने माँ बाप की एक लोती बच्ची थीं। और उनके पिता महिला की  शिक्षा के हिमायती थे, वो उस समय जहाँ पर महिलाओं को घर से भी बाहर निकलने की इजाजत नहीं थी।उस समय उनके  पिता ने अहिल्याबाई का साथ दिया और उनको घर पर पड़ाना शुरू कर दिया था वे बचपन से ही  लक्षणरहित योग्यता की महिला थी, जो कि किसी भी विषय को बहुत ही आसानी से समझ जाती थी। आगे चलकर उन्होंने अपने काम से लोगों को हैरान कर दिया। और बहुत सारी मुश्किलों का सामना करने के बाद भी अहिल्याबाई होलकर ने कभी भी अपनी राह से विचलित नहीं हुई और वो अपने लक्ष्य तक पहूंचने में सफल हो गई।


अहिल्याबाई होल्कर का विवाह मल्हार राव के बेटे खंडेराव से हुआ था, लेकिन साल 1754 में पति की मृत्यु के बाद महारानी ने सती होने का फैसला लिया था. इनके इस फैसले ने सबको हैरान कर दिया था, लेकिन उनके ससुर ने उन्हें ऐसा करने से रोक लिया था. वहीं कुछ समय बाद महारानी के पुत्र की मृत्यु  हो गई थी


  • महारानी अहिल्याबाई बचपन से ही दया, लोगों के लिए किसी भी प्रकार का मनभेद नही होना और  लोगो की मदद करने में विश्वास करती थी । एक दिन की बात है जिस दिन अहिल्याबाई गरबी लोगों को भोजन करवा रही थी। मालवा राज के राजा  मल्हार राव होलकर  जो पुणे जा रहे थे और आराम करने के लिए  चोंडी गांव में ही रुके हुए थे और उनकी अहिल्याबाई पर नज़र पड़ी। 
  • अहिल्याबाई को लोगो के प्रति  दया भाव को देखकर महाराज मल्हार राव होलकर इतने खुश हुए कि उन्होंने महारानी अहिल्याबाई होलकर के पिता मानकोजी शिंदे से अपने बेटे की शादी अहिल्याबाई से करवाने के लिए  हाथ मांगा लिया।
  • साल 1733 में जब अहिल्याबाई होलकर 8 साल की ही  थी, तब ही उनकी शादी खंडेराव के साथ करवा दी गई क्योंकि उस समय मे बाल विवाह करना एक रिवाज माना जाता था जिसमे लड़के और लड़कियो दोनों की ही छोटी उम्र में शादी करवा दी जाती थी।खांडरेव होलकर के मराठा सम्राट थे जिस से अहिल्याबाई की शादी हुई तो इस वजह से शादी के बाद अहिल्याबाई छोटी उम्र में ही मराठा साम्राजय की रानी बन गई।
  • शादी के 10 साल बाद अहिल्याबाई और खांडेराव होलकर को 1745 में एक  बेटा हुआ जिसका नाम उन्होंने  मालेराव रखा था और बेटे के जन्म के 3 साल बाद ही 1748 में उनकी बेटी हुई जिसका नाम उन लोगों ने मुक्ताबाई रखा था।
  • अहिल्याबाई, राजकीय कार्य मे अपने पति की बहुत ही मदद करती थी, साथ ही उन्होंने अपने पति को युद्ध और एक कौशल फौजी के रूप में निखरने के लिए हमेशा उत्साहित भी किया करती थी । हालांकि, खांडेराव एक अच्छे सिपाही थे, जिन्होंने अपने पिता से फ़ौजी कौशल की शिक्षा ली थी।
  • अहिल्याबाई की बहुत ही खुशी से और  शांती से अपने जीवन को जी रही थी । लेकिन साल 1754 में अहिल्याबाई की जिंदगी में दुखो का समुंद्र ही टूट पड़ा। 
  • अहिल्याबाई जिस समय  21 साल की ही थी तो तभी उनके पति युद्ध मे शहीद हो गए। जिसका सदमा अहिल्याबाई को बहुत पड़ा था। अपने पति से इतने प्यार करने की वजह से अहिल्याबाई ने संत होने का फैसला ले लिया, लेकिन उनके ससुर जो कि उनके पिता समान है पिता ने उनको  ऐसा करने से रोक दिया उनकी बात को मान कर अहिल्याबाई अपना फैसला बदल लिया|
  • साल 1766 में ही मल्हार राव होलकर की भी मृत्यु हो गई। शासन संभालने के कुछ दिनों बाद ही साल 1767 में उनके बेटे मालेराव की भी मौत हो गई। पति,पुत्र और अपने पिता समान ससुर की मृत्यु के बाद भी उन्होंने खुद को जिस तरह से  संभाला है जो कि काबिलय तारीफ है।

  • एक महान और वीर स्तर के तौर पर अहिल्याबाई ने 18वीं सदी में राजधानी माहेश्वर में नर्मदा नदी के किनारे एक बहुत ही सुंदर और आलीशान अहिल्या महल को बनवाया । इस महल में गाने, कला, शास्त्र समूह के लिए जाना जाता था।
  • महारानी अहिल्याबाई किसी बड़े शहर की महारानी नही थी लेकिन तब भी उन्होंने अपने शासन प्रणाली की अवधि में अपने राज्य के विवरण करने में और और उसको एकदम सम्पन्न और विकसित शहर बनाने के काम करने में लग गयी।
  • इंदौर  शहर को एक सुंदर शहर बनाने के लिए महारानी अहिल्याबाई ने अपना बहुत से योगदान दिया था। कम से कम 30 साल के आश्रयजनक प्रधान के बाद अहिल्याबाई ने एक छोटे से गांव को एक बहुत ही खूबसूरत शहर बना दिया तज जो कि समपन्न है।उन्होंने सरकार पर सड़क की मरम्मत, लोगों को रोजगार मिले, जो लोग भूखे है उन लोगों के लिए अन का प्रम्बन्ध, और सबको शिक्षा प्राप्त हो चाहे वो पुरुष हो या महिला को मिलनी चाहिए इन सब कामों के लिए अहिल्याबाई ने काफी दबाव दिया।  अहिल्याबाई की वजह से ही आज भी इंदौर की पहचान एक भारत केसुंदर और विकसित देश में नाम आता है जो कि बहुत ही गर्व की बात है।
  • उनका प्रशासन-प्रबंध संबंधी तंत्र श्रेष्ठ था, वो खुद रात को देर देर तक जागती थी और खुद अपने राज्य का जितना भी काम है उसको खत्म करती थी।

महारानी अहिल्याबाई के सम्मान

महारानी अहिल्याबाई होलकर के किए गए महान कामों के लिए उनको  भारत सरकार की तरफ से 25 अगस्त साल 1996 में  समानित किया गया। और एक डाक टिकट को भी जारी कर दिया गया।  अहिल्याबाई जी के आसाधारण कामों के लिए भी उनके नाम पर एक अवॉर्ड भी स्थित किया गया था।

एक योजना उत्तराखण्ड सरकार की ओर से भी चलाई जा रही है। जो अहिल्‍याबाई होल्‍कर को पूर्णं सम्‍मान देती है। इस योजना का नाम ‘अहिल्‍याबाई होल्‍कर भेड़ बकरी विकास योजना है। अहिल्‍याबाई होल्‍कर भेड़ बकरी पालन योजना के तहत उत्तराखणवड के बेरोजगार, बीपीएल राशनकार्ड धारकों, महिलाओं व आर्थि के रूप से कमजोर लोगों को बकरी पालन यूनिट के निर्माण के लिये भारी अनुदान राशि प्रदान की जाती है। लगभग 1,00,000 रूपये की इस युनिट के निर्मांण के लिये सरकार की ओर से 91,770 रूपये सरकारी सहायता रूप में अहिल्‍याबाई होलकर के लाभार्थी को प्राप्‍त होते हैं।

 महारानी अहिल्याबाई को मौत सन् 13 अगस्त 1795  में तबियत खराब होने की वजह से हो गई थी। लेकिन आज भी अहिल्याबाई होलकर जी की उदारता और उनके महान कामों ने उनको अभी तक लोगो के दिल मे जिंदा बनाए रखा है।


अहिल्या घाट, 
वाराणसी


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