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"જો તમારી અંદર પ્રતિભા હોય તો તમે જરૂર સફળ થશો પછી ભલે પરિસ્થિતીઓ કેટલી પણ વિપરીત કેમ ન હોય તે તમને સફળતાની ઉડાન ભરવાથી ક્યારેય રોકી શકશે નહી"

07 November, 2020

चन्द्रशेखर वेंकट रमन जीवनी

 



नाम : चंद्रशेखर वेंटक रमन

जन्म : 7 नवंबर, 1888.
जन्म : तिरुचिरापल्ली (तमिलनाडू).
पिता : चंद्रशेखर अय्यर.
माता : पार्वती अम्मल.
शिक्षा : 1906 में M.Sc. (भौतिक शास्त्र).
पत्नी : लोकसुंदरी.

आरम्भिक जीवन :

        चन्द्रशेखर वेंकटरमन का जन्म ७ नवम्बर सन् १८८८ ई. में तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली नामक स्थान में हुआ था। आपके पिता चन्द्रशेखर अय्यर एस. पी. जी. कॉलेज में भौतिकी के प्राध्यापक थे। आपकी माता पार्वती अम्मल एक सुसंस्कृत परिवार की महिला थीं। सन् १८९२ ई. मे आपके पिता चन्द्रशेखर अय्यर विशाखापतनम के श्रीमती ए. वी.एन. कॉलेज में भौतिकी और गणित के प्राध्यापक होकर चले गए। उस समय आपकी अवस्था चार वर्ष की थी। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा विशाखापत्तनम में ही हुई। वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य और विद्वानों की संगति ने आपको विशेष रूप से प्रभावित किया।


        उन दिनों आपके समान प्रतिभाशाली व्यक्ति के लिए भी वैज्ञानिक बनने की सुविधा नहीं थी। अत: आप भारत सरकार के वित्त विभाग की प्रतियोगिता में बैठ गए। आप प्रतियोगिता परीक्षा में भी प्रथम आए और जून, १९०७ में आप असिस्टेंट एकाउटेंट जनरल बनकर कलकत्ते चले गए। उस समय ऐसा प्रतीत होता था कि आपके जीवन में स्थिरता आ गई है। आप अच्छा वेतन पाएँगे और एकाउँटेंट जनरल बनेंगे। बुढ़ापे में उँची पेंशन प्राप्त करेंगे।

        पर आप एक दिन कार्यालय से लौट रहे थे कि एक साइन बोर्ड देखा, जिस पर लिखा था 'वैज्ञानिक अध्ययन के लिए भारतीय परिषद (इंडियन अशोसिएशन फार कल्टीवेशन आफ़ साईंस)'। मानो आपको बिजली का करेण्ट छू गया हो। तभी आप ट्राम से उतरे और परिषद् कार्यालय में पहुँच गए। वहाँ पहुँच कर अपना परिचय दिया और परिषद् की प्रयोगशाला में प्रयोग करने की आज्ञा पा ली।

        रमन ने वर्ष 1917 में सरकारी नौकरी छोड़ दी और ‘इण्डियन एसोसिएशन फॉर कल्टिवेशन ऑफ साइंस’ के अंतर्गत भौतिक शास्त्र में पालित चेयर स्वीकार कर ली। सन् 1917 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के भौतिक विज्ञान के प्राध्यापक के तौर पर उनकी नियुक्ति हुई।‘ऑप्टिकस’ के क्षेत्र में उनके योगदान के लिये वर्ष 1924 में रमन को लन्दन की ‘रॉयल सोसाइटी’ का सदस्य बनाया गया और यह किसी भी वैज्ञानिक के लिये बहुत सम्मान की बात थी।

        ‘रमन इफ़ेक्ट’ की खोज 28 फरवरी 1928 को हुई। रमन ने इसकी घोषणा अगले ही दिन विदेशी प्रेस में कर दी। प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका ‘नेचर’ ने उसे प्रकाशित किया। उन्होंने 16 मार्च, 1928 को अपनी नयी खोज के ऊपर बैंगलोर स्थित साउथ इंडियन साइन्स एसोसिएशन में भाषण दिया। इसके बाद धीरे-धीरे विश्व की सभी प्रयोगशालाओं में ‘रमन इफेक्ट’ पर अन्वेषण होने लगा।


वैज्ञानिक जीवन :

        सन 1909 में जे. एन. टाटा ने भारत में वैज्ञानिक प्रतिभाओं के विकास के लिए बैंगलोर में भारतीय विज्ञान संस्थान की स्थापन की. इस संस्थान के लिए मैसूर नरेश ने 150 हेक्टेयर जमीन प्रदान की थी। अंग्रेजी हुकूमत को विश्वास में लेकर संस्थान का निर्माण कार्य शुरु हुआ निर्माण कार्य पूर्ण होने पर अंग्रेजी हुकूमत ने वहां अपना निदेशक नियुक्त किया। संस्था के सदस्य भी अंग्रेजी ही थे।

        सन 1933 में वेंकटरमन भारतीय विज्ञान संस्थान के पहले भारतीय निदेशक बनाए गए. उस समय संस्थान के नाम पर बहुत पैसा खर्च किया जा रहा था। लेकिन वैज्ञानिक प्रतिभाओं का विकास न के बराबर रहा. इस स्थिति में C. V. Raman ने अंग्रेजों की उस परंपरा को ओड़ते हुए पूरे देश में विज्ञान का प्रचार – प्रचार किया. उन्होंने संस्था की नीतियों व कार्यक्रमों में बहुत तेजी से रचनात्मक बदलाव किया। ऐसा करके वे उस संस्थान को बेहतर बनाना चाहते थे। उन्होंने भारतीय विज्ञान संस्थान में हरियाली को जन्म दिया. वहां फूलों के पौधे भी उगाए गए। आगे चलकर यह संस्थान आकर्षण का प्रमुख केंद्र बन गया।

        वैज्ञानिक प्रतिभाओं में युरोप और अमेरिका श्रेष्ट क्यों है? भारतीय वैज्ञानिक प्रतिभाएं श्रेष्ट क्यों नहीं हैं? ये सवाल रमन के दिमाग में हमेशा घुमते – रहते थे. विज्ञान के क्षेत्र में भारत को श्रेष्ट बनाने के लिए उन्होंने देश के नौजवानों को विज्ञान के प्रति जाग्रत किया. इसके लिए रमन को देश के कई महानगरों में तरह – तरह की सभाओं को संबोधित करना पड़ा. उनके भाषण से बहुत से नौजवानों को प्रेरणा मिली. जिसकी बदौलत विक्रम साराभाई, होमी जहांगीर भाभा और के.आर. रामनाथन जैसे युवा वैज्ञानिकों ने पूरे विश्व में अपना और अपने देश का नाम रोशन किया.

        कुछ दिनों के बाद रामन ने एक और शोध पेपर लिखा और लन्दन में विज्ञान की अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पत्रिका 'नेचर' को भेजा। उस समय तक वैज्ञानिक विषयों पर स्वतंत्रतापूर्वक खोज करने का आत्मविश्वास उनमें विकसित हो चुका था। रामन ने उस समय के एक सम्मानित और प्रसिद्ध वैज्ञानिक लॉर्ड रेले को एक पत्र लिखा। इस पत्र में उन्होंने लॉर्ड रेले से अपनी वैज्ञानिक खोजों के बारे में कुछ सवाल पूछे थे। लॉर्ड रेले ने उन सवालों का उत्तर उन्हें प्रोफ़ेसर सम्बोधित करके दिया। वह यह कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि एक भारतीय किशोर इन सब वैज्ञानिक खोजों का निर्देशन कर रहा है।

        रामन सुबह साढ़े पाँच बजे परिषद की प्रयोगशाला में पहुँच जाते और पौने दस बजे आकर ऑफिस के लिए तैयार हो जाते। ऑफिस के बाद शाम पाँच बजे फिर प्रयोगशाला पहुँच जाते और रात दस बजे तक वहाँ काम करते। यहाँ तक की रविवार को भी सारा दिन वह प्रयोगशाला में अपने प्रयोगों में ही व्यस्त रहते। वर्षों तक उनकी यही दिनचर्या बनी रही। उस समय रामन का अनुसंधान संगीत-वाद्यों तक ही सीमित था। उनकी खोज का विषय था कि वीणा, वॉयलिन, मृदंग और तबले जैसे वाद्यों में से मधुर स्वर क्यों निकलता है।

        अपने अनुसंधान में रामन ने परिषद के एक साधारण सदस्य आशुतोष डे की भी सहायता ली। उन्होंने डे को वैज्ञानिक अनुसंधान के तरीकों में इतना पारंगत कर दिया था कि डे अपनी खोजों का परिणाम स्वयं लिखने लगे जो बाद में प्रसिद्ध विज्ञान पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। रामन का उन व्यक्तियों में विश्वास था जो सीखना चाहते थे बजाय उन के जो केवल प्रशिक्षित या शिक्षित थे।

        वास्तव में जल्दी ही उन्होंने युवा वैज्ञानिकों का एक ऐसा दल तैयार कर लिया जो उनके प्रयोगों में सहायता करता था। वह परिषद के हॉल में विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के लिए भाषण भी देने लगे, जिससे युवा लोगों को विज्ञान में हुए नये विकासों से परिचित करा सकें। वह देश में विज्ञान के प्रवक्ता बन गये। रामन की विज्ञान में लगन और कार्य को देखकर कलकत्ता विश्वविद्यालय के उपकुलपति आशुतोष मुखर्जी जो 'बगाल के बाघ' कहलाते थे, बहुत प्रभावित हुए।

        सर रामन ने सन् 1943 में बैंगलोर के समीप रामन रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की । इसी संस्थान में वे जीवन के अंत तक अपने प्रयोग करते रहे और अध्ययन रत रहे । सन 1970 में इस महान भारतीय और वैज्ञानिक का देहांत हो गया । हम सब को सर रामन के कार्यों और उपलब्धियों पर बड़ा गर्व है। वे एक महान भौतिकशात्री और वैज्ञानिक के साथ-साथ महामानव भी थे । अभिमान और लोभ उन्हें छू भी नहीं पाया था । वे सतत् सत्य की खोज में लगे रहे और उसे प्राप्त किया ।

        सन् 1921 में वेंकटरमन को ऑक्सफोर्ड, इंग्लैंड से विश्वविद्यालयीन कांग्रेस में भाग लेने के लिए निमंत्रण प्राप्त हुआ। वहाँ उनकी मुलकात लार्ड रदरफोर्ड, जे. जे. थामसन जैसे विश्वविख्यात वैज्ञानिकों से हुई। इंग्लैंड से भारत लौटते समय एक अनपेक्षित घटना के कारण (जिसका वर्णन इस लेख के आरंभ में किया गया है) ‘रमन प्रभाव’ की खोज के लिए प्रेरणा मिली। दरअसल, कलकत्ता विश्वविद्यालय पहुँचकर वेंकटरमन ने अपनें सहयोगी डॉ. के. एस. कृष्णन के साथ मिलकर जल तथा बर्फ के पारदर्शी प्रखंडों (ब्लॉक्स) एवं अन्य पार्थिव वस्तुओं के ऊपर प्रकाश के प्रकीर्णन पर अनेक प्रयोग किए।

        तमाम प्रयोगों के बाद वेंकटरमन अपनी उस खोज पर पहुँचे, जो ‘रमन प्रभाव’ नाम से विश्वविख्यात है। आप सोच रहे होंगें कि आखिर ये रमन प्रभाव क्या है और भौतिकी की दुनिया में इसका कितना प्रभाव है? रमन प्रभाव के अनुसार जब एक-तरंगीय प्रकाश (एक ही आवृत्ति का प्रकाश) को विभिन्न रसायनिक द्रवों से गुजारा जाता है, तब प्रकाश के एक सूक्ष्म भाग की तरंग-लंबाई मूल प्रकाश के तरंग-लंबाई से भिन्न होती है। तरंग-लंबाई में यह भिन्नता ऊर्जा के आदान-प्रदान के कारण होता है।

        जब ऊर्जा में कमी होती है तब तरंग-लंबाई अधिक हो जाता है तथा जब ऊर्जा में बढोत्तरी होती है तब तरंग-लंबाई कम हो जाता है। यह ऊर्जा सदैव एक निश्चित मात्रा में कम-अधिक होती रहती है और इसी कारण तरंग-लंबाई में भी परिवर्तन सदैव निश्चित मात्रा में होता है। दरअसल, प्रकाश की किरणें असंख्य सूक्ष्म कणों से मिलकर बनी होती हैं, इन कणों को वैज्ञानिक ‘फोटोन’ कहते हैं।

        वैसे हम जानतें हैं कि प्रकाश की दोहरी प्रकृति है यह तरंगों की तरह भी व्यवहार करता है और कणों (फोटोनों) की भी तरह। रमन प्रभाव ने फोटोनों के ऊर्जा की आन्तरिक परमाण्विक संरचना को समझने में विशेष सहायता की है। किसी भी पारदर्शी द्रव में एक ही आवृत्ति वाले प्रकाश को गुजारकर ‘रमन स्पेक्ट्रम’ प्राप्त किया जा सकता है।


पुरस्कार :

1. 
वर्ष 1924 में रमन को लन्दन की ‘रॉयल सोसाइटी’ का सदस्य बनाया गया।
2. 
‘रमन प्रभाव’ की खोज 28 फ़रवरी 1928 को हुई थी। इस महान खोज की याद में 28 फ़रवरी का दिन भारतमें हर वर्ष ‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
3. 
वर्ष 1929 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस की अध्यक्षता की।
4. 
वर्ष 1929 में नाइटहुड दिया गया।
5. 
वर्ष 1930 में प्रकाश के प्रकीर्णन और रमण प्रभाव की खोज के लिए उन्हें भौतिकी के क्षेत्र में प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार मिला।
6. 
वर्ष 1954 में भारत रत्न से सम्मानित।
7. 
वर्ष 1957 में लेनिन शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया

 1907 में मद्रास के प्रेसिडेंसी कॉलेज से फिजिक्स में मास्टर डिग्री लेने के बाद उन्होंने एक अकाउंटेंट के तौर पर सरकारी नौकरी शुरू की

* 1917 में सीवी रमन कोलकाता यूनिवर्सिटी में फिजिक्स के प्रोफेसर बनें

* साल 1929 में संपन्न होने वाले 16वें भारतीय विज्ञान कांग्रेस के अध्यक्ष थे

* रमन ने भैतिक विज्ञान में कई प्रयोग किए थे जिसमें कि उनकी थ्‍योरी 'रमन इफेक्‍ट' सबसे महत्‍वपूर्ण मानी जाती है

* विज्ञान में उनके प्रशंसनीय कार्य को देखते हुए सन 1930 में उन्हें नोबेल पुरस्कार दिया गया

* डॉ. रमन ने भौतिकी में 'रमन इफेक्ट' की खोज की थी जिसके मुताबिक जब कोई प्रकाश किसी ट्रांसपेरेंट वस्तु से आर-पार जाता है तो उस लाइट की वेबलेंथ बदल जाती है इसे रमन स्कैटरिंग थ्योरी नाम से जाना जाता है

* सी.वी. रमन पहले ऐसे भारतीय और अश्वेत व्यक्ति थे जिन्हें साइंस के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया

* सी.वी. रमन के बारे में एक बात कही जाती है, कि उन्हें नोबेल पुरस्कार जीतने का पूरा कांफिडेंट था इसीलिए उन्होंने एनाउंसमेंट से चार महीने पहले ही स्वीडन का टिकट बुक करा लिया था

* साल 2013 में उनकी 125वीं बर्थ एनीवर्सिरी पर गूगल ने उनका डूडल तैयार किया था

* देश की राजधानी दिल्ली में एक सड़क का नाम सी.वी रमन मार्ग रखा गया है

* सी.वी रमन को 1954 में भारत रत्न अवार्ड दिया गया था

* 28 फरवरी 1928 को रमन इफेक्ट की खोज करने पर भारत हर साल इस दिन को 'नेशनल साइंस डे' के तौर पर सेलीब्रेट करता है

* सी.वी.रमन ने 13 साल की उम्र में ही इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर ली थी

* रमन और सूरी भागवंतम ने 1932 में क्वांटम फोटॉन स्पिन को डिस्क्वर किया था

* सी वी रमन का निधन 21 नवंबर 1970 को हुआ

* उनका मानना था कि महिलाएं विज्ञान के क्षेत्र में जाने पर पुरुषों की तुलना में अधिक अच्छा कर सकती हैं


डॉ सी.वी. रमनका मानना ​​था कि
"विज्ञान का उपयोग युद्ध के लिए नहीं बल्कि विश्व शांति के लिए किया जाना चाहिए"
उनकी जयंती पर आधुनिक भारत के ऐसे महान वैज्ञानिक को श्रद्धांजलि

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