महादेवी वर्मा
(आधुनिक युग की मीरा, हिंदी भाषा की एक अच्छी कवयित्री)
जन्म तिथि: 26 मार्च 1907
जन्म स्थान: उत्तर प्रदेश
पिता का नाम : गोविंदप्रसाद वर्मा
माता का नाम : हेमरा की देवी
निधन: 11 सितंबर 1987
आधुनिक युग की मीरा’ कही जाने वाली महादेवी वर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के फ़र्रुख़ाबाद में होली के दिन 26 मार्च 1907 में हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा उज्जैन में हुई और एम. ए. उन्होंने संस्कृत में प्रयाग विश्वविद्यालय से किया। बचपन से ही चित्रकला, संगीतकला और काव्यकला की ओर उन्मुख महादेवी विद्यार्थी जीवन से ही काव्य प्रतिष्ठा पाने लगी थीं। वह बाद के वर्षों में लंबे समय तक प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्राचार्या रहीं। वह इलाहाबाद से प्रकाशित ‘चाँद’ मासिक पत्रिका की संपादिका थीं और प्रयाग में ‘साहित्यकार संसद’ नामक संस्था की स्थापना की थी।
‘निराला वैशिष्ट्य’ की स्वामिनी महादेवी वर्मा छायावाद की चौथी स्तंभ भी कही जाती हैं। प्रणय एवं वेदनानुभूति, जड़ चेतन का एकात्म्य भाव, सौंदर्यानुभूति, मूल्य चेतना, रहस्यात्मकता उनकी मुख्य काव्य-वस्तु है। वह प्रधानतः गीति कवयित्री हैं जिनके काव्य में परंपरा और मौलिकता का अद्वितीय समन्वय नज़र आता है। शब्द-निरूपण, वर्ण-विन्यास, नाद-सौंदर्य और उक्ति-सौंदर्य-सभी दृष्टियों से वह भाषा पर सहज अधिकार रखती हैं। उन्होंने अपने काव्य में प्रतीकात्मक संकेत-भाषा का प्रयोग किया है जिसमें छायावादी प्रतीकों के साथ ही मौलिक प्रतीकों का भी कुशल प्रयोग हुआ है। उनका वर्ण-परिज्ञान उनके बिंब-विधान की प्रमुख विशेषता है। चाक्षुष, श्रव्य, स्पर्शिक बिंबों में उनकी विशेष रुचि रही है। अप्रस्तुत के माध्यम से प्रस्तुत के साम्य गुणों का चित्रण वह बख़ूबी करती हैं। रूपक, अन्योक्ति, समासोक्ति तथा उपमा उनके प्रिय अलंकार हैं। उनके संबंध में कहा गया है कि छायावाद ने उन्हें जन्म दिया था और उन्होंने छायावाद को जीवन दिया।
उन्होंने कविताओं के साथ ही रेखाचित्र, संस्मरण, निबंध, डायरी आदि गद्य विधाओं में भी योगदान किया है। ‘नीहार’, ‘रश्मि’, ‘नीरजा’, ‘सांध्य गीत’, ‘यामा’, ‘दीपशिखा’, ‘साधिनी’, ‘प्रथम आयाम’, ‘सप्तपर्णा’, ‘अग्निरेखा’ उनके काव्य-संग्रह हैं। रेखाचित्रों का संकलन ‘अतीत के चलचित्र’ और ‘स्मृति की रेखाएँ’ में किया गया है। ‘शृंखला की कड़ियाँ’, ‘विवेचनात्मक गद्य’, ‘साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध’, ‘संकल्पिता’, ‘हिमालय’, ‘क्षणदा’ उनके निबंधों का संकलन है।
वह साहित्य अकादेमी की सदस्यता प्राप्त करने वाली पहली लेखिका थीं। भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण और पद्म विभूषण पुरस्कारों से सम्मानित किया। उन्हें यामा के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने उनके सम्मान में जयशंकर प्रसाद के साथ युगल डाक टिकट भी जारी किया।
सुमित्रानंदन पंत, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी और महादेवी वर्मा हिन्दी साहित्य के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं।
आधुनिक हिंदी की सबसे शक्तिशाली कवियों में से एक होने के कारण उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है। कवि निराला ने उन्हें "हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती" भी कहा है।
उन्होंने खड़ी बोली हिंदी कविता में एक नरम शब्दावली विकसित की जो आज तक केवल व्रज भाषा में ही संभव मानी जाती है। उसके लिए उन्होंने अपने समय के अनुकूल संस्कृत और बांग्ला के कोमल शब्दों को चुनकर उन्हें हिंदी का रूप दिया। संगीत के पारखी होने के कारण उनके गीतों का मधुर सौन्दर्य और उनके काव्य-वाक्यों की व्यंजन शैली अन्यत्र दुर्लभ है। उन्होंने अध्यापन से अपना करियर शुरू किया और अंत तक वे प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाध्यापिका बनीं। उनका बाल विवाह हुआ था लेकिन उन्होंने अपना जीवन कुंवारे के रूप में बिताया। प्रख्यात कवयित्री और गद्य लेखिका महादेवी वर्मा साहित्य और संगीत की विदुषी होने के साथ-साथ कुशल चित्रकार और सृजनात्मक अनुवादक भी थीं।
उन्होंने अपने जीवन की शुरुआत एक शिक्षिका के रूप में की और अंत तक प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्य बनीं। बाल विवाह किया लेकिन ब्रह्मचारी जीवन व्यतीत किया। उन्होंने गद्य में भी लिखा। वे संगीत और चित्रकला में भी निपुण थे। उन्होंने नौहार, रश्मी, नीरजा, संध्या गीत, दीपशिखा, यम, सप्तपूर्णा, अतीत के चलचित्र केकम स्मृति की रेखा, स्मृति, दृष्टि बोध, नीलांबर, आत्मिका, विवेचनात्मक गद्य, खंड जैसी पुस्तकें लिखी हैं। नैनीताल से 25 किमी. उन्होंने दूर रामगढ़ के उमागढ़ में एक बंगला बनवाया, जिसे आज महादेवी साहित्य संगमालय के नाम से जाना जाता है। वहीं रहते हुए उन्होंने महिला जागरूकता, महिला शिक्षा और नशामुक्ति के लिए काम किया। हिंदी साहित्य में अद्वितीय योगदान के बाद 1987 में महादेवी वर्मा का इलाहाबाद में निधन हो गया।
गांधी का उन पर बहुत प्रभाव था। यह गांधी ही थे जिन्होंने उन्हें महिला शिक्षा के लिए काम करने के लिए प्रेरित किया। गांधी को केवल हिंदी में बोलते देख महादेवी ने पूछा क्यों, बापू ने कहा कि केवल हिंदी भाषा ही भारत की आत्मा को आसानी से व्यक्त कर सकती है। तभी से महादेवी ने हिंदी को अपने जीवन का आधार बनाया।
महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाएं
देवी वर्मा जी के 10 से ज्यादा काव्य संकलन प्रकाशित हुए जिनमें से निम्न है। आत्मिका, निरन्तरा, परिक्रमा, सन्धिनी 1965 में यामा 1936 में गीतपर्व, दीपगीत, स्मारिका और हिमालय उल्लेखनीय है।
महादेवी वर्मा के प्रमुख रेखा चित्रों में अतीत के चलचित्र 1941 में और स्मृति की रेखाएं 1943 में श्रृंखला की कड़ियां और मेरा परिवार उल्लेखनीय है।
महादेवी वर्मा ने 1956 में पद का साथी और 1972 में मेरा परिवार स्मृति चित्रण 1973 में और संस्मरण 1983 में उल्लेखनीय संस्मरण लिखे।
महादेवी वर्मा के प्रमुख निबंध संग्रह में श्रृंखला की कड़ियां 1942 में प्रकाशित हुई और विवेचनात्मक गद 1942 साहित्यकार की आस्था और अन्य निबंध 1962 संकल्प ता 1969 और भारतीय संस्कृति के स्वर उल्लेखनीय है। क्षणदा महादेवी वर्मा का एकमात्र ललित निबंध ग्रंथ है। प्रमुख कहानी संग्रह में गिल्लू प्रमुख है। संभाषण नामक भाषण संग्रह 1974 में प्रकाशित हुआ।
प्रमुख कविता संग्रह में ठाकुरजी भोले हैं और आज खरीदेंगे हम ज्वाला प्रमुख है।
महादेवी वर्मा की कविताएं –
- निहार (1930)
- रश्मी (1932)
- नीरजा (1933)
- संध्यागीत (1935)
- प्रथम आयाम (1949)
- सप्तपर्ण (1959)
- दीपशिक्षा (1942)
- अग्नि रेखा (1988)
- अतीत के चलचित्र
- पथ के साथी
- मेरा परिवार
- संस्मरण
- संभाषण
- स्मृति के रेहाये
- विवेचमानक गद्य
- स्कंध
- हिमालय
महादेवी वर्मा को मिली प्रमुख पुरस्कार और सम्मान
- महादेवी जी को 1934 में नीरजा के लिए सक्सेरिया पुरस्कार दिया गया।
- 1942 में स्मृति की रेखाएं के लिए द्विवेदी पदक दिया गया।
- महादेवी वर्मा को 1943 में मंगलाप्रसाद पारितोषिक भारत भारती के लिए मिला।
- महादेवी वर्मा को 1952 में उत्तर प्रदेश विधान परिषद के लिए मनोनीत भी किया गया।
- 1956 में भारत सरकार ने साहित्य की सेवा के लिए इन्हें पद्म भूषण भी दिया।
- 1982 में यामा के लिए महादेवी वर्मा को ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया।
- महादेवी वर्मा को मरणोपरांत 1988 में पद्म विभूषण पुरस्कार दिया गया।
- महादेवी वर्मा को 1969 में विक्रम विश्वविद्यालय,
- 1977 में कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल,
- 1980 में दिल्ली विश्वविद्यालय तथा
- 1984 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी ने इनको डी.लिट (डॉक्टर ऑफ लेटर्स) की उपाधि दी।
1979: साहित्य अकादमी फेलोशिप।
28 अप्रैल 2018: महादेवी वर्मा को भारत के गूगल डूडल पर चित्रित किया गया
महादेवी वर्मा के बारे में रोचक तथ्य
- इनका बाल विवाह किया गया लेकिन इन्होंने अपना जीवन अविवाहित की तरह ही गुजारा।
- महादेवी वर्मा की रुचि, साहित्य के साथ साथ संगीत में भी थी। चित्रकारिता में भी इन्होंने अपना हाथ आजमाया।
- महादेवी वर्मा का पशु प्रेम किसी से छुपा नहीं है वह गाय को अत्यधिक प्रेम करती थी।
- महादेवी वर्मा के पिताजी मांसाहारी थे और उनकी माताजी शुद्ध शाकाहारी थी।
- महादेवी वर्मा कक्षा आठवीं में पूरी प्रांत में प्रथम स्थान पर रही।
- महादेवी वर्मा इलाहाबाद महिला विद्यापीठ की कुलपति और प्रधानाचार्य भी रही।
- यह भारतीय साहित्य अकादमी की सदस्यता ग्रहण करने वाली पहली महिला थी जिन्होंने 1971 में सदस्यता ग्रहण की।
"मेरी आहे सोती है ऑटो की सौतो में, मेरा सर्वस्व छुपा है इन दीवानी चौतो में" -
महादेवी वर्मा की मृत्यु 11 सितंबर 1987 को इलाहाबाद (प्रयागराज), उत्तर प्रदेश में हुई थी। मृत्यु के समय उनकी उम्र 80 वर्ष थी। उन्होंने अपने जीवन में गुलाम भारत व आजाद भारत दोनों को देखा था।
वह छायावादी आंदोलन की एक महान कवयित्री थी जिन्होंने अनेकों विषयों पर कहानियां, कविताएं, उपन्यास आदि लिखे।
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